श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र
नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं,
शतेन्द्रं सु पूजैं भजैं नाय-शीशं।
मुनीन्द्रं
गणीन्द्रं नमें जोडि़ हाथं, नमों देव देवं सदा
पर्श्वनाथं।।1।।
गजेन्द्र
मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावे, महा-आगतैं नागतैं
तू बचावे।
महावीर
तैं युद्ध मैं तू जितावे, महा-रोगतैं बंधतैं तू छुड़ावे।।2।।
दु:खी-दु:खहर्ता
सुखी-सुक्खकर्ता, सदा सेवकों को महानंद-भर्ता।
हरे
यक्ष-राक्षस भूतं पिशाचं, विषम डाकिनी विघ्न के भय
अवाचं।।3।।
दरिद्रीन
को द्रव्य के दान दीने, अपुत्रीन को तू भले पुत्र
कीने।
महासंकटों
से निकारे विधाता, सबे संपदा सर्व को देहि दाता।।4।।
महाचोर
के वज्र को भय निवारे, महापौन के पुंजतैं तू उबारे।
महाक्रोध
की अग्नि को मेघधारा, महालोभ शैलेष को वज्र मारा।।5।।
महामोह-अंधेर
को ज्ञान-भानं, महा-कर्म-कांतार को द्यौ प्रधानं।
किये
नाग-नागिन अधोलोक स्वामी, हरयो मान तू दैत्य को हो
अकामी।।6।।
तुही
कल्पवृक्षं तुही कामधेनं, तुही दिव्य चिंतामणी नाग-एनं।
पशु-नर्क
के दु:खतैं तू छुड़ावैं, महास्वर्ग में मुक्ति में
तू बसावे।।7।।
करे
लोह को हेम पाषाण नामी, रटे नाम सो क्यों न हो
मोक्षगामी।
करैं
सेव ताकी करैं देव सेवा, सुने बैन सोही लहे ज्ञान
मेवा।।8।।
जपै
जाप ताको नहीं पाप लागे, धरे ध्यान ताके सबै दोष
भागे।
बिना
तोहि जाने धारे भव घनेरे, तुम्हारी कृपा तैं सरैं
काम मेरे।।9।।
(दोहा)
गणधर
इन्द्र न कर सके, तुम विनती भगवान।
‘द्यानत’ प्रीति निहार के, कीजे
आप समान।।
जय
जिनेन्द्र,
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🙏
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