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श्री 1008 शांतिनाथ चालीसा Shantinath Chalisa


(दोहा)

शान्तिनाथ भगवान का, चालीसा सुखकार।

मोक्ष प्राप्ति के लिए, कहूँ सुनो चितधार।।

चालीसा चालीस दिन, तक कह चालीस बार।

बढ़े जगत सम्‍पन्‍न सुमत, अनुपम शुद्ध विचार।।

(चौपाई)

शान्तिनाथ तुम शान्तिनायक, पंचम चक्री जग सुखदायक।

तुम  ही सोलहवें हो तीर्थंकर, पूजें देव भूप सुर गणधर।।

पंचाचार गुणों के धारी, कर्म रहित आठों गुणकारी।

तुमने मोक्ष मार्ग दर्शाया, निज गुण ज्ञान भानु प्रकटाया।।

स्‍याद्वाद विज्ञान उचारा, आप तिरे औरन को तारा।

ऐसे जिन को नमस्‍कार कर, चढूँ सुमत शान्ति नौका पर।।

सूक्ष्‍म सो जो कुछ गाथा गाता, हस्तिनापुर जग विख्‍याता।

विश्‍वसेन ऐरा पितु-माता, सुर तिहुं काल रत्‍न वर्षाता।।

साढ़े दस करोड़ नित गिरते, ऐरा मॉं के ऑंगन भरते।

पन्‍द्रह माह तक हुई लुटाई, ले गए भर-भर लोग-लुगाई।।

भादों वदी सप्‍तमी गर्भाते, उत्‍तम सोलह स्‍वप्‍ने आते।

सुर चारों कायों के आये, नाटक गायन नृत्‍य दिखाये।।

सेवा में जो रही देवियाँ, रखती खुश माँ को दिन रतियॉं।

जन्‍म जेठ वदी चौदस के दिन, घण्‍टे अनहद बजे गगन घन।।

तीनों ज्ञान लोक सुखदाता, मंगल सकल हर्ष गुण लाता।

इन्‍द्र देव सुर सेवा करते, विद्या कला ज्ञान गुण बढ़ते।।

अंग-अंग सुन्‍दर मनमोहन, रत्‍न जडि़त तन वस्‍त्राभूषण।

बल विक्रम यश वैभव काजा, जीते छहों खण्‍ड के राजा।।

न्‍यायवान दानी उपचारी, प्रजा हर्षित निर्भय सारी।

दीन अनाथ दु:खी नहीं कोई, होती उत्‍तम वस्‍तु बोई।।

ऊँचे आप आठ सौ गज थे, वदन स्‍वर्ण और चिह्न हिरण थे।
शक्ति ऐसी थी जिन स्‍वामी
, वरी हजार छयानवें रानी।।

लख चौरासी हाथी रथ थे, घोड़े क्रोड़ अठारह शुभ थे।

सहस पचास भूख के राजन, अरबों सेवा में सेवक जन।।

तीन करोड़ थी सुन्‍दर गईयां, इच्‍छा पूर्ण करें नौ-निधियॉं।

चौदह रत्‍न व चक्र सुदर्शन, उत्‍तम भोग वस्‍तुएं अनगिन।।

थी अड़तालीस करोड़ ध्‍वजायें, कुण्‍डल चन्‍द्र सूर्य सम छाये।

अमृत गर्भ नाम का भोजन, लाजवाब ऊँचा सिंहासन।।

लाखों मन्दिर भवन सुसज्जित, नार सहित तुम जिनमें शोभित।

जितना सुख था शान्तिनाथ को, अनुभव होता ज्ञानवान को।।

चलें जीव जो त्‍याग धर्म पर, मिले ठाठ उनको ये सुखकर।

पच्‍चीस सहस्‍त्रवर्ष सुख पाकर, उमड़ा त्‍याग हितंकर तुम पर।।

वैभव सब सपने सम जाना, जग तुमने क्षणभंगुर जाना।

ज्ञानोदय जब हुआ तुम्‍हारा, पाये शिवपुर तज संसारा।।

कामी मनुज काम को त्‍यागे, पापी पाप कर्म से भागे।

सुत नारायण तख्‍त बिठाया, तिलक चढ़ा अभिषेक कराया।।

नाथ आपको बिठा पालकी, देव चले ले राह गगन की।

इत उत इन्‍दर चंवर ढुरावे, मंगल गाते वन पहुँचावें।।

भेष दिगम्‍बर अपना कीना, केश लौंच पंच मुष्‍ठी कीना।

पूर्ण हुआ उपवास छठा जब, शुद्धाहार चले लेने तब।।

कर तीनों वैराग चिन्‍तवन, चारों ज्ञान किये सम्‍पादन।

चार हाथ मग चलतें-चलते, षट् कायिक की रक्षा करते।।

मनहर मीठे वचन उचरते, प्राणिमात्र का दुखड़ा हरते।

नाशवान काया यह प्‍यारी, इससे ही यह रिश्‍तेदारी।।

इससे मात-पिता सुत नारी, इसके कारण फिरे दुखारी।

गर यह तन ही प्‍यारा लगता, तरह-तरह का रहेगा मिलता।।

तज नेह काया माया का, हो भरतार मोक्ष दारा का ।

विषय भोग सब दु:ख के कारण, त्‍याग धर्म ही शिव के साधन।।

निधि लक्ष्‍मी जो कोई त्‍यागे, उसके पीछे-पीछे भागे।

प्रेम रूप जो इसे बुलावे, उसके पास कभी नहीं आवे।।

करने को जग का निस्‍तारा, छहों खण्‍ड का राज विसारा।

देवी देव सुरा सुर आये, उत्‍सव तप कल्‍याण मानये।।

पूजन नृत्‍य करें नत मस्‍तक, गाई महिमा प्रेम पूर्वक।

करते तुम आहार जहॉं पर, देव रतन वर्षाते उस घर।।

जिस घर दान पात्र को मिलता, घर वह नित्य फूलता-फलता।

आठों गुण सिद्धों के ध्‍याकर, दशों धर्म चित काय तपाकर।।

केवल ज्ञान आपने पाया, लाखों प्राणी पार लगाया।

समवशरण में ध्‍वनि बिखराई, प्राणी मात्र समझ में आई।।

समवशरण प्रभु का जहॉं जाता, कोस चार सौ तक सुख पाता।

फूल फलादिक मेवा आती, हरी भरी खेती लहराती।।

सेवा में छत्‍तीस थे गणधर, महिमा मुझसे क्‍या हो वर्णन।

नकुल सर्प मृग हरी से प्राणी, प्रेम सहित मिल पीते पानी।।

आप चतुर्मुख विराजमान थे, मोक्ष मार्ग को दिव्‍यवान थे।

करते आप विहार गगन में अन्‍तरिक्ष थे समवशरण में।।

तीनों जगत आनन्दित कीने, हित उपदेश हजारों दीने।

पौने लाख वर्ष हित कीना, उम्र रही जब एक महीना।

श्री सम्‍मेद शिखर पर आये, अजर अमर पद तुमने पाये।।

निष्‍पृह कर उद्धार जगत के, गये मोक्ष तुम लाख वर्ष के।

आंक सकें क्‍या छवी ज्ञान की, जोत सूर्य सम अटल आपकी।।

बहे सिन्‍धु सम गुण की धारा, रहे सुमत चित नाम तुम्‍हारा।

(सोरठा)

नित चालीस ही बार, पाठ करें चालीस दिन।

खेये सुगन्‍ध अपार, शांतिनाथ के सामने।।

होवे चित्‍त प्रसन्‍न, भय चिंता शंका मिटे।

पाप होय सब हन्‍न, बल विद्या वैभव बढ़े।।

जाप्‍य:- ऊॅं ह्रीं सर्वशांति कराय श्री शांतिनाथ जिनेन्‍द्राय नम:

 

 

 


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