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बारह भावना Barah Bhavna II Barah Bhawana II Raja Rana chhatrapati hathin ke aswar


 

      !! बारह भावना !!

(अनित्‍य भावना)

 राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार।

मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार।।१।।

(अशरण भावना)

दल-बल देवी-देवता, मात-पिता परिवार।

मरती बिरिया जीव को, कोई न राखनहार।।२।।

(संसार भावना)

दाम-बिना निर्धन दु:खी, तृष्‍णावश धनवान।

कहूँ न सुख संसार में, सब जग देख्‍यो छान।।३।।

(एकत्‍व भावना)

आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय।

यों कबहूँ इस जीव को, साथी-सगा न कोय।।४।।

(अन्‍यत्‍व भावना)

जहॉं देह अपनी नहीं, तहॉं न अपना कोय।

घर-संपति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय।।५।।

(अशुचि भावना)

दिपै चाम-चादर-मढ़ी, हाड़-पींजरा देह।

भीतर या-सम जगत् में, अवर नहीं घिन-गेह।।६।।

(आस्रव भावना)

मोह-नींद के जोर, जगवासी घूमें सदा।

कर्म-चोर चहूँ-ओर, सरवस लूटें सुध नहीं।।७।।

सतगुरू देय जगाय, मोह-नींद्र जब उपशमें।

तब कछु बने उपाय, कर्म-चोर आवत रूके।।

(संवर भावना)

ज्ञान-दीप तप-तेल भर, घर शोधें भ्रम-छोर।

या-विधि बिन निकसे नहीं, पैठे पूरब-चोर।।८।।

(निर्जरा भावना)

पंच-महाव्रत संचरण, समिति पंच-परकार।

प्रबल पंच-इंद्रिय-विजय, धार निर्जरा सार।।९।।

(लोक भावना)

चौदह राजु उतंग नभ, लोक-पुरूष-संठान।

तामें जीव अनादि तें, भरमत हैं बिन-ज्ञान।।१०।।

(बोधिदुर्लभ भावना)

धर-कन-कंचन राज-सुख, सबहि सुलभकर जान।

दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ-ज्ञान।।११।।

(धर्म भावना)

जॉंचे सुर-तरू देय सुख, चिंतत चिंतारैन।

बिन जॉंचे बिन चिंतये, धर्म सकल-सुख देन।।१२।।

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