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!!श्री आदिनाथ चालीसा!! Adhinath Chalisa



 

!!श्री आदिनाथ चालीसा!!  Adhinath Chalisa 


(दोहा)

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम,

उपाध्‍याय, आचार्य का ले सुखकारी नाम।

सर्व साधु और सरस्‍वती, जिन म‍ंदिर सुखकार,

आदिनाथ भगवान को, मन मंदिर में धार।।

(चौपाई)

जय जय आदिनाथ जिनस्‍वामी, तीनकाल तिहूं जग में नामी।

वेष दिगम्‍बर धार रहे हो, कर्मों को तुम मार रहे हो।।

हो सर्वज्ञ बात सब जानो, सारी दुनिया को पहचानो।

नगर अयोध्‍या जो कहलाये, राजा नाभिराय बतलाये।।

मरूदेवी माता के उदर से, चैत वदी नवमीं को जन्‍मे।

तुमने जग को ज्ञान सिखाया, कर्मभूमि का बीज उपाया।।

कल्‍पवृक्ष जब लगे बिछरने, जनता आई दुखड़ा कहने।

सबका संशय तभी भगाया, सूर्य चन्‍द्र का ज्ञान कराया।।

खेती करना भी सिखलाया, न्‍याय दण्‍ड आदिक समझाया।

तुमने राज किया नीति का, सबक आपसे जग ने सीखा।।

पुत्र आपका भरत बतलाया, चक्रवर्ती जग में कहलाया।

बाहुबली जो पुत्र तुम्‍हारे, सबसे पहले मोक्ष सिधारे।

सुता आपकी दो बतलाई, ब्राह्मी और सुन्‍दरी कहलाई।

उनको भी विद्या सिखलाई, अक्षर और गिनती बतलाई।।

इक दिन राज सभा के अंदर, एक अप्‍सरा नाच रही कर।

आयु बहुत थोड़ी थी बाकी, इसीलिए वह थोड़ा नाची।।

जभी मर गई इसे देखकर झट आया वैराग्‍य उमड़कर।

बेटों को झट पास बुलाया, राज पाट सब में बढवाया।।

छोड़ सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी।

राव हजारो साथ सिधाए, राजपाट तज वन को धाये।।

ले‍किन जब तुमने तप कीना, सबने अपना रस्‍ता लीना।

वेष दिगम्‍बर तजकर सबने, छाल आदि के कपड़े पहने।।

भूख प्‍यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये।

और धर्म इस भांति फैलाये, जो अब दुनिया में दिखलाये।।

: महीने तक ध्‍यान लगाये, फिर भोजन करने को आये।।

भोजन विधि जाने न कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय।

इसी तरह बस चलते-चलते, छ: महीने भोजन को बीते।।

नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए।

याद तभी पिछला भव आया, तुमको फौरन ही पड़गाया।।

रस गन्‍ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया।

तपकर केवल ज्ञान उपाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया।।

अतिशय युक्‍त तुम्‍हारा मंदिर, एक है मरसलगंज के अंदर।

उसका यह अतिशय बतलाया, कष्‍ट क्‍लेश का होय सफाया।

मानतुंग पर दया दिखाई, जं‍जीरे सब काट गिराई।

राजसभा में मान बढ़ाया, जैन धर्म जग में फैलाया।।

मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्‍ट भक्‍त का दूर भगाओ।

(सोरठा)

नित चालीस ही बार, पाठ करें चालीस दिन,

खेय धूप अपार, मरसलगंज आय के।

होय कुबेर समान, जन्‍म दरिद्री होय जो

जिसके नहीं संतान, नाम वंश जग में चले।।

जाप्‍य:ऊॅं ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्‍द्राय नम:



जय जिनेन्‍द्र,

         आप सभी से निवेदन है कि मेरी इस पोस्‍ट को देखें ताकि मेरा अधिक से अधिक भगवान की भक्ति में लीन ऋद्धालुओं को जिनवाणी मॉं की कृतियां पढ़ने को इंटरनेट के माध्‍यम से मिल सकें। मैं प्रयास करूंगा कि जैन धर्म से संबंधित अधिक से अधिक विषय वस्‍तु इस ब्‍लॉग पर आप सभी के लिए उपलब्‍ध करा सकूं।

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 धन्‍यवाद 



















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