म्हारा चन्द्रप्रभु जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी।
सावन सुदि दशमी तिथि आई, प्रगटे त्रिभुवन राई जी।। म्हारा....
अलवर प्रांत में नगर तिजारा, दरसे देहरे मांही जी।
सीता-सती ने तुमको ध्याया, अग्नि में कमल रचाया जी।। म्हारा.....
मैना सती ने तुमको ध्याया, पति का कुष्ठ मिटाया जी।
जिनमें भूत
प्रेत नित आते, उनका साथ छुड़ाया जी।।
म्हारा.......
सोमा सती ने तुमको ध्याया, नाग का हार बनाया जी।
मानतुंग मुनि
तुमको ध्याया, तालों को तोड़ भगाया जी।।
म्हारा.......
जो भी दु:खिया दर पर आया, उसका कष्ट मिटाया जी।
अंजन चोर ने
तुमको ध्याया, शस्त्रों से अधर उठाया
जी।। म्हारा.......
सेठ सुदर्शन तुमको ध्याया, सूली का सिंहासन बनाया जी।
समवशरण में जो
कोई आया, उसको पार लगाया जी।। म्हारा.......
रत्न-जडि़त सिंहासन सोहे, ता में अधर विराजे जी।
तीन छत्र शीष
पर सोहें, चौंसठ चंवर ढुरावें जी।।
म्हारा.......
ठाड़ों सेवक अर्ज करै छै, जनम मरण मिटाओ जी।
भक्त तुम्हारे
तुमको ध्यावैं, बेड़ा पार लगाओ जी।। म्हारा.......
जाप्य: ऊँ ह्रीं अर्हं श्री चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय नम:
जय जिनेन्द्र,
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