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Shri Padmprabhu Chalisa II श्री पद्मप्रभु चालीसा II Jain Bhajan II Jain Chalisa

 


II श्री पद्मप्रभु चालीसा II Shri Padmprabhu Chalisa 


(दोहा)

शीश नवा अरिहन्‍त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।

उपाध्‍याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।

सर्व साधु और सरस्‍वती, जिन मंदिर सुखकार।

पद्मपुरी के पद्म को, मन-मंदिर में धार।।

(चौपाई)

जय श्री पद्मप्रभु गुणधारी, भवि जन को तुम हो हितकारी।

देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्‍त के दूर हटाओ।।

तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, छट्टे तीर्थंकर कहलाओ।

तीन काल तिहुं जग को जानो, सब बातें क्षण में पहचानो।।

वेष दिगम्‍बर धारणहारे, तुम से कर्म शत्रु भी हारे।

मूर्ति तुम्‍हारी कितनी सुन्‍दर, दृष्टि सुखद जमती नासा पर।।

क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेष का लेश न पाया।

वीतराग तुम कहलाते हो, सब जग के मन को भाते हो।।

कौशाम्‍बी नगरी कहलाए, राजा धारणजी बतलाए।

सुन्‍दरी नाम सुसीमा उनके, जिनके उर से स्‍वामी जन्‍मे।।

कितनी लम्‍बी उमर कहाई, तीस लाख पूरब बतलाई।

इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग उमड्कर।।

कार्तिक वदी त्रयोदशी भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी।

सारे  राज पाट को तज के, तभी मनोहर वन में पहुंचे।।

तपकर केवल ज्ञान उपाया, चैत सुदी पूनम कहलाया।

एक सौ दस गणधर बतलाए, मुख्‍य व्रज चामर कहलाए।।

लाखों मुनि आर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों।

संख्‍याते तिर्यंच बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये।।

फिर सम्‍मेद शिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणाकर।

पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई।।

जयपुर राज ग्राम बड़ा है, स्‍टेशन शिवदासपुरा है।

मूला नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा।।

खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को बतलाई।

चिन्‍ह कमल लख लोग लुगाई, पद्मप्रभु की मूर्ति बताई।।

मन में अति हर्षित होते हैं, अपने दिल का मल धोते हैं।

तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेत को दूर भगाया।।

भूत प्रेत दु:ख देते जिसको, चरणों में लेते हो उसको।

जब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे।।

जपने से जब नाम तुम्‍हारा, भूत प्रेत वो करें किनारा।

ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्‍धे भी ऑंखें पाते हैं।।

प्रतिमा श्‍वेत-वर्ण कहलाए, देखत ही हृदय को भाए।

ध्‍यान तुम्‍हारा जो धरता है, इस भव से वह नर तरता है।।

अन्‍धा देखे, गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे।

बहरा सुन-सुन कर खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्‍हारी होवे।।

मैं हूं स्‍वामी दास तुम्‍हारा, मेरी नैया कर दो पारा।

चालीसे को ‘’चन्‍द्र’’ बनावे, पद्म प्रभु को शीश नबावे।

(सोरठा)

नित चालीस ही बार, पाठ करें
चालीस दिन।

खेय सुगन्‍ध अपार, पद्मपुरी में आयके।।

होय कुबेर समान, जन्‍म दरिद्री होय जो।

जिसके नहीं संतान, नाम वंश जग में चले।

जाप्‍य:- ऊँ ह़ीं अर्हं श्री पद्मप्रभु जिनेन्‍द्राय नम:

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